जर्मनी में बढ़ा नस्लवाद, भेदभाव की सबसे ज्यादा घटनाएं काम की जगह पर
New Delhi
नस्लवाद ऐसी चीज बन गयी है जिसे खत्म ही नहीं किया जा सकता ऐसा प्रतीत होता है, भारत एक देश है जिसे एक तरफ कई धर्म के विभिन्न कलाओं और सांस्कृत्यों के लिए जाना जाता है वहीँ दूसरी तरफ यहाँ भी प्राचीन समय से नस्लवाद चलती आ रही है, किसी भी देश के लोगों को या कहें देश के आम जनता को यह लगता है कि उनके देश में वे काफी सुरक्षित हैऔर विदेश में जात पात रंगभेद ज्यादा नहीं होते होंगे वे मानसिक तौर पर आजाद होते होंगे, पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है विदेशो में भी यहाँ तक कई कार्य के क्षेत्र में भेदभाव किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाती है,
जर्मनी में भेदभाव की शिकायतों में रिकॉर्ड स्तर पर तेजी आई है. बीते साल ऐंटी-डिस्क्रिमिनेशन एजेंसी (एडीएस) की परामर्श टीम के पास 10,800 लोग अपनी शिकायतें लेकर पहुंचे. यह किसी साल में दर्ज हुई सबसे अधिक संख्या है.जर्मनी की ऐंटी-डिस्क्रिमिनेशन एजेंसी (आंटीडिस्क्रिमिनियरुंग्सश्टेले डेस बुंडेस) भेदभाव से जुड़े मामले देखती है.
एजेंसी ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया कि 2022 के मुकाबले पिछले साल भेदभाव के मामलों की संख्या 22 फीसदी ज्यादा रही. एजेंसी की कमिश्नर फेरडा आटामन ने सालाना रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “हमारे मामलों की संख्या एक चिंताजनक रुझान दिखाती है.”
स्थिति की संवेदनशीलता स्पष्ट करते हुए आटामन ने कहा, “पहले से कहीं ज्यादा लोग समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण और चरमपंथीकरण का प्रत्यक्ष रूप से अनुभव कर रहे हैं.” आटामन ने रेखांकित किया कि “विदेशी बाहर निकल जाएं और इंसानों के प्रति अपमान की भावना इन दिनों सामान्य हो गई है.”
नस्लीय भेदभाव के मामले सबसे ज्यादा
रिपोर्ट के मुताबिक, एडीएस के पास सबसे ज्यादा मामले नस्लभेद के आए. ऐसे मामलों से जुड़ी पूछताछ की संख्या करीब 3,400 रही. यह समूची इन्क्वायरी की संख्या का 41 फीसदी है. यानी, हर पांच में से दो इंसान ने नस्ली भेदभाव से जुड़ी मालूमात की. इसके बाद करीब 25 प्रतिशत के साथ सबसे ज्यादा मामले “विकलांगता और स्थायी बीमारी” के खिलाफ भेदभाव से जुड़े थे.
नस्लभेद की वजह से जर्मनी से छिटक रहे कुशल विदेशी कामगार
लिंग या लैंगिक पहचान से जुड़े भेदभाव की करीब 2,000 इन्क्वायरी आईं, जो कुल मामलों का 24 प्रतिशत हैं. भेदभाव के अन्य मामलों में उम्र, धर्म, विचारधारा और यौन पहचान भी शामिल हैं. साथ ही, सार्वजनिक स्थानों और छुट्टी-आराम के समय में भेदभाव से जुड़े अनुभवों के भी 840 मामले आए.
इसके अलावा ऐंटी-डिस्क्रिमिनेट्री ऑफिस के पास भेदभावपूर्ण बयानों और सोशल मीडिया, इंटरनेट पर अपमानजनक बर्ताव से जुड़ी शिकायतें भी आईं.
भेदभाव की सबसे ज्यादा घटनाएं काम की जगह पर हुईं. रेस्तरां, दुकान और सार्वजनिक परिवहन जैसी जगहों पर हुए भेदभाव के भी कई मामले आए. 1,000 से ज्यादा शिकायतें सार्वजनिक और सरकारी एजेंसियों में भेदभाव से जुड़ी है. पुलिस और न्याय प्रक्रिया से जुड़े मामलों की संख्या 400 से अधिक है.
जर्मनी के जनरल इक्वल ट्रीटमेंट ऐक्ट में सुधार की अपील
फेरडा आटामन ने कहा, “प्रवासी, विकलांग लोग और क्वीयर अपने रोजमर्रा के जीवन में बहुत ठोस तरीके से भेदभाव का अनुभव करते हैं और यह क्रूर है.” आटामन ने अपील की, “भेदभाव केवल उनके लिए समस्या नहीं है, जो इसका अनुभव करते हैं. भेदभाव लोकतंत्र और हमारे संवैधानिक देश के लिए भी खतरा है.
अगर आप लोकतंत्र की हिफाजत करना चाहते हैं, तो आपको भेदभाव के खिलाफ लोगों को बेहतर सुरक्षा देनी होगी.” कमिश्नर आटामन ने सरकार से अपील की कि वह ‘जनरल इक्वल ट्रीटमेंट ऐक्ट’ (एजीजी) में जल्द सुधार पर काम करे.
‘नस्लवाद जर्मनी के लोकतंत्र के लिए एक खतरा’
जर्मनी का एजीजी कानून 18 अगस्त 2006 को लागू हुआ था. इसके माध्यम से यूरोपीय संघ (ईयू) के चार भेदभाव विरोधी निर्देशों को जर्मन कानून का हिस्सा बनाया गया. यह ऐक्ट श्रम और नागरिक कानूनों से जुड़ा है और इसका मकसद नस्ल, जातीयता, लिंग, धर्म, विकलांगता, उम्र और यौन रुझान के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को रोकना है.
इन कानूनों के तहत नौकरी देने वाली कंपनियों और दफ्तरों को सुनिश्चित करना होता है कि भर्तियों के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों और आवेदन प्रक्रिया में कोई भेदभाव ना हो. कर्मचारी अपने साथ भेदभाव की शिकायत दर्ज करवा सकते हैं या मुआवजे की मांग कर सकते हैं. एम्प्लॉयर को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि काम की जगह पर किसी तरह का भेदभाव ना हो. अगर कोई कर्मचारी किसी अन्य कर्मचारी के साथ भेदभाव करे, तो एम्प्लॉयर को कार्रवाई करनी होगी.
जर्मनी और यूरोप में काले लोगों से नस्लभेद बढ़ता जा रहा है
आटामन ने भेदभाव के बढ़ते मामलों के मद्देनजर एजीजी में और सुधार की जरूरत बताते हुए कहा, “जनरल इक्वल ट्रीटमेंट ऐक्ट में सुधार अब प्राथमिकता होनी चाहिए. इसे और नहीं टाला जा सकता है. मैं उम्मीद करती हूं कि सरकार रोजमर्रा की जिंदगी में पेश आने वाली नफरत और नस्लवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाएगी. प्रभावित लोगों के प्रति यह सरकार की जवाबदेही है.”